जय हिंद दोस्तों
कल 16 नवंबर था, भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में बहुत महत्वपूर्ण दिन। इसी दिन, वर्ष 1915 में, करतार सिंह सराभा सहित गदर पार्टी के सात क्रांतिकारियों को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दी गई। हम में से कईयों ने तो यह नाम भी नहीं सुने होंगे। कोई बात नहीं, अभी बताते हैं।
गदर पार्टी का गठन और उसका उद्देश्य
गदर पार्टी का गठन 21 अप्रैल 1913 को अमेरिका के रेगन स्टेट के शहर एस्टोरिया में हुआ था। बाबा सोहन सिंह भकना इसके संस्थापक थे, और सेक्रेटरी लाला हरदयाल थे। इसके सदस्य अधिकतर पंजाब से गए सिख थे, जो अमेरिका और कनाडा के प्रशांत तट पर स्थित वाशिंगटन, ओरेगॉन और कैलिफोर्निया स्टेट्स में रहकर खेतों में, आरा मिलों में और रेलवे लाइन बिछाने वाली कंपनियों में काम करते थे। बहुत कम पढ़े-लिखे थे, लेकिन भारत माता के प्रति देशप्रेम इनमें कूट-कूट कर भरा था।
व्यक्तिगत संघर्ष और देश प्रेम
इनमें से कईयों ने अपनी मेहनत से खूब डॉलर कमाए और ठेके पर जमीन लेकर खेती करने लगे थे। गदर पार्टी के कोषाध्यक्ष पंडित कांशीराम ने भी एक आरा मिल खरीद ली थी। जुलाई 1914 में प्रथम विश्व युद्ध शुरू होने पर इन क्रांतिकारियों ने अपनी नौकरियां छोड़ दीं और भारत के लिए सशस्त्र क्रांति का प्रयास किया।
भारत लौटने का निर्णय और संघर्ष
गदर पार्टी के सदस्य भारत में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने लौटे। इनका मुख्य उद्देश्य भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त करना था। 21 फरवरी 1915 को क्रांति का दिन तय किया गया था, लेकिन एक गद्दार, कृपाल सिंह, जो अंग्रेजों का जासूस था, ने पार्टी की महत्वपूर्ण जानकारी पुलिस को दे दी।
बलिदान और प्रेरणा
गदर पार्टी के इन क्रांतिकारियों का बलिदान व्यर्थ नहीं गया, बल्कि इनका संघर्ष अगली पीढ़ी के क्रांतिकारियों को प्रेरित करता रहा। इस संघर्ष में कुल 145 भारतीय शहीद हुए थे और बड़ी संख्या में आजीवन कारावास की सजा प्राप्त हुई।
16 नवंबर 1915 का ऐतिहासिक दिन
आज हम उन सात वीरों की बात कर रहे हैं, जिन्हें 16 नवंबर 1915 को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दी गई। इनमें से प्रमुख नाम हैं: करतार सिंह सराभा, विष्णु गणेश पिंगले, जगत सिंह सुर सिंह, हरनाम सिंह सियालकोटी, बख्शीश सिंह गिलवाली, सुरेंद्र सिंह बड़ा और सुरेंद्र सिंह छोटा।
करतार सिंह सराभा का योगदान
करतार सिंह सराभा ने गदर पार्टी की गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनका नाम भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारियों द्वारा बड़े सम्मान से लिया जाता था। 19 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने बलिदान से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित किया।
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अन्य प्रमुख क्रांतिकारी
विष्णु गणेश पिंगले, जो यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया बर्कले में पढ़ाई कर रहे थे, ने गदर पार्टी के प्रचार और क्रांति के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने भारत में कई प्रमुख क्रांतिकारियों से संपर्क स्थापित किया और देश में क्रांति की तैयारी की।
फांसी पर चढ़ने वाले सात वीर
16 नवंबर 1915 को फांसी पर चढ़ने वाले इन सात वीरों में से जगत सिंह सुर सिंह, हरनाम सिंह सियालकोटी, बख्शीश सिंह, सुरेंद्र सिंह बड़ा, और सुरेंद्र सिंह छोटा भी शामिल थे।
करतार सिंह सराभा की आखिरी बात
करतार सिंह सराभा ने फांसी से पहले जेल सुपरिंटेंडेंट कलण खान से कहा था, "यह मत सोचना कि करतार सिंह मर गया। मेरे रक्त की एक-एक बूंद करतार सिंह पैदा करेगी, जो देश की आजादी के लिए लड़ेगा।"
निष्कर्ष
इन क्रांतिकारियों का बलिदान हमें यह सिखाता है कि स्वतंत्रता के संघर्ष में हर एक का योगदान महत्वपूर्ण होता है। ये सात नाम केवल इतिहास के पन्नों पर नहीं हैं, बल्कि ये भारत की आजादी की नींव रखने वाले महान योद्धा हैं।
जय हिंद जय भारत!